’रूसी शूरवीरों’ ने दिखाए नए लड़ाकू विमान एसयू-30 एसएम के गुण
21 मार्च को मलेशिया में 14 वीं अन्तरराष्ट्रीय नौसैनिक और वायुसैनिक प्रदर्शनी ’लीमा-2017’ में रूस के शूरवीर हवाबाज़ों ने आसमान में रूस के नए लड़ाकू विमान एसयू-30 एसएम के करतब दिखाए और इस तरह पहली बार दुनिया के सामने रूस के इस नए लड़ाकू विमान को पेश किया। प्रदर्शनी में विमान के करतबों को देखने के लिए आए लोग इस विमान में गहरी दिलचस्पी इसलिए भी दिखा रहे थे क्योंकि यह विमान भारतीय वायुसेना के पास उपस्थित एसयू-30 एमकेआई और मलेशियाई वायुसेना के पास उपस्थित एसयू-30 एमकेएम विमानों का ही अधिक विकसित और नया सुधरा हुआ रूप है।
’रूसी शूरवीर’ दुनिया का ऐसा पहला पायलट-दल है, जो भारी लड़ाकू विमानों से आकाश में कलाबाज़ियाँ और विभिन्न प्रकार के ऐसे करतब दिखलाता है कि दर्शक दाँतों तले उँगली दबा लेते हैं। इस पायलट-दल के सभी विमान रूसी तिरंगे झण्डे के रंग में रंगे हुए हैं, इसलिए आकाश में उड़ते हुए इन विमानों को ज़मीन से देखकर तुरन्त पहचाना जा सकता है। ’रूसी शूरवीर’ पायलट-दल की स्थापना भारी रूसी लड़ाकू विमान एसयू-27 चलाने वाले पायलटों के बीच से 1991 में की गई थी। और इस पायलट-दल की स्थापना होने के छह महीने बाद ही सारी दुनिया के लोग इनके कौशल और करतबों को देखकर मुग्ध रह गए थे।
यह नया विमान बेहतर क्यों है
एसयू-30 विमान का निर्माण एसयू-27 विमान के आधार पर किया गया था। एसयू-30 लड़ाकू विमान अपनी युद्ध-क्षमताओं और लक्षणों की दृष्टि से एसयू-27 से कहीं आगे है और आज उसे दुनिया के बेहतरीन बहुउद्देशीय लड़ाकू विमानों में से एक माना जाता है।
यह ऐसा पहला विमान है, जो अपनी बेहद प्रभावशाली वायुगतिकीय (एयरोडायनेमिक) क्षमताओं, आला एएल-31एफ़पी इंजन, निर्देशित दिशा नियन्त्रण प्रणाली और सुपर गतिशीलता के लिए दुनिया में जाना-माना जाता है।
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विमान उड़ाने वाले पायलटों का कहना है कि अपनी इन्हीं ख़ासियतों की वजह से भारतीय वायुसेना द्वारा इस्तेमाल किया जा रहा लड़ाकू विमान एसयू-30 एमकेआई आमने-सामने की आसमानी लड़ाई में दूसरे सभी विमानों पर भारी पड़ता है।
रूस-भारत संवाद से बात करते हुए ’इरकूत’ विमान निगम के परीक्षक-पायलट वलेरी अविरयानफ़ ने बताया कि एसयू-30 एमकेआई विदेशों को निर्यात किया जाने वाला दुनिया का ऐसा पहला लड़ाकू विमान है, जिसमें एक ऐसा राडार और एण्टीना लगा हुआ है, जो कई लक्ष्यों को खोजने के साथ-साथ उनपर एकसाथ हमले करने की भी संभावना देता है।
उन्होंने कहा रूस का यह ऐसा पहला लड़ाकू विमान है, जिसमें लगे रेडियो इलैक्ट्रोनिक उपकरणों को विमान के ढाँचे के भीतर छुपाया नहीं गया है, इसलिए इस विमान में सुधार करके इसे आधुनिकीकृत करना बहुत आसान है और विमान ख़रीदने वाले देश की ख़ास ज़रूरतों के अनुसार विमान में बड़ी आसानी से बदलाव किए जा सकते हैं।
वलेरी अविरयानफ़ ने कहा — यह नया विमान सुपर पैंतरेबाज़ विमान होगा, जो आमने-सामने की लड़ाई में तुरन्त पैंतरे बदल सकेगा। इस विमान में तैनात हथियारों का इस्तेमाल करना भी अब पहले से सहज और आसान हो गया है तथा पैंतरे बदलते हुए भी उनका सुरक्षित ढंग से जल्दी-जल्दी इस्तेमाल किया जा सकता है।
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यह विमान टू-सीटर विमान है यानी इसमें दो पायलट बैठ सकते हैं। जबकि रूस के दूसरे नए लड़ाकू विमानों में सिर्फ़ एक ही पायलट के बैठने की जगह है। तास समाचारसमिति से बात करते हुए रूस के वायुसेना उपप्रमुख लैफ़्टीनेण्ट-जनरल अन्द्रेय यूदिन ने कहा — एसयू-35 की जगह एसयू-30एसएम का इस्तेमाल बेहतर क्यों है, जबकि दोनों विमान एक जैसे उद्देश्य ही पूरे करते हैं? इस सवाल का जवाब यह है कि एसयू-30एसएम विमान में दो पायलट बैठ सकते हैं। विमान में उनके बैठने और आराम से काम करने के लिए काफ़ी जगह है। उन्हें भिंचकर नहीं बैठना होगा, इससे पायलटों को बड़ा आराम और सुख मिलेगा। विमान उड़ाते हुए एक पायलट विमान उड़ाएगा और दूसरा उसके सहचालक की भूमिका अदा कर सकता है।
रूसी शूरवीरों द्वारा प्रचार-प्रदर्शन
रूसी सूचना-तकनीक विश्वविद्यालय की ’यान्त्रिकी और ऊर्जा प्रणाली’ अन्तरराष्ट्रीय प्रयोगशाला के प्रमुख पाविल बुलात ने बताया कि रूस के जाँबाज़ हवाबाज़ों का दल ’रूसी शूरवीर’ इस विमान की क्षमताओं का प्रदर्शन करने के लिए मलेशिया गया था क्योंकि रूस विदेशी वायुसेनाओं को अपना यह नया लड़ाकू विमान बेचना चाहता है।
उन्होंने बताया — रूस पश्चिमी एशिया के देशों, इण्डोनेशिया और अल्जीरिया की वायुसेनाओं के लिए एसयू-30 एमके विमानों की सप्लाई करना चाहता है। इसीलिए ’रूसी शूरवीर’ पायलट-दल के विमानचालकों ने ’इरकूत’ विमान निगम और ’रोस-अबारोन-एक्सपोर्त’ कम्पनी के अनुरोध पर मलेशिया में विमान को उड़ाकर दिखाया और उसका प्रचार-प्रदर्शन या विज्ञापन किया।
उनका कहना है कि रूसी विमान की प्रतिस्पर्द्धा फ़्राँसीसी विमान रफ़ाल से हो रही है।
बुलात ने कहा — इन दोनों विमानों की तुलना उनकी युद्ध-क्षमताओं के आधार पर की जा सकती है। लेकिन फ़्राँसीसी विमान रूसी विमान से क़रीब दुगुना महँगा है और फ़्राँस विमान के ख़रीदारों को विमान-निर्माण की तक्नोलौजी भी उपलब्ध नहीं कराता है। इसके अलावा ’रफ़ाल’ हलका लड़ाकू विमान माना जाता है, जबकि एसयू-30 भारी लड़ाकू विमान है और वह 6000 किलोमीटर तक उड़ान भर सकता है।
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रफ़ाल सिर्फ़ एक ही मामले में एसयू-30एमके से बेहतर है कि उसमें आधुनिकीकृत इलैक्ट्रोनिक स्कैनिंग प्रणाली लगी हुई है।
लीमा-2017 प्रदर्शनी में भाग लेने वाले ’इरकूत’ विमान निगम के अध्यक्ष अलेग दिमचेन्का ने ’तास’ समाचार समिति से बात करते हुए बताया कि उन्होंने भारत के रक्षा मन्त्रालय के सामने यह प्रस्ताव रखा है कि वह अपनी वायुसेना में उपस्थित एसयू-30 एमकेआई लड़ाकू विमानों का पूरी तरह से आधुनिकीकरण करा ले। इस आधुनिकीकरण के बाद विमानों की कार्यक्षमता और युद्धक्षमता काफ़ी बढ़ जाएगी।
भारत के साथ इन दिनों अनेक दिशाओं में सहयोग किया जा रहा है। भारत में ही एसयू-30एमकेआई विमानों की पूरी तरह से मरम्मत करने और उसकी कार्यक्षमता बढ़ाने के लिए वर्कशॉप बनाई जा रही है। इस वर्कशॉप में रूस के सभी तरह के विमानों में लगे सभी उपकरणों और मशीनों की मरम्मत करने और उनका आधुनिकीकरण करने की सारी सुविधाएँ उपलब्ध होंगी। इस तरह भारत द्वारा ख़रीदे गए और भविष्य में ख़रीदे जाने वाले सभी विमानों की पूरी-पूरी मरम्मत अब भारत में ही की जा सकेगी।
रूसी विमान निगम ’इरकूत’ ने एसयू-30एमकेआई लड़ाकू विमान का निर्माण विशेष रूप से भारत के लिए, भारत की ज़रूरतों के अनुसार किया है। बाद में इस बेहद सफल विमान के आधार पर एसयू-30 एसएम विमान का निर्माण किया गया और उसे रूसी वायुसेना में शामिल कर लिया गया। सन् 2004 से हिन्दुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड के भारत स्थित कारख़ानों में ही एसयू-30एमकेआई विमान का उत्पादन किया जाने लगा। इस विमान के कल-पुर्जे रूस से भारत भेजे जाते हैं और भारत में ही एचएएल के कारख़ानों में विमान की जुड़ाई की जाती है। विमान के कुछ हिस्से भारत में ही बनाए जाते हैं।
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