रूसी वैज्ञानिकों ने होम्योपैथी को बेकार और अनुपयोगी बताया
विगत 6 फ़रवरी को रूस की विज्ञान अकादमी के ’छद्म विज्ञान आयोग’ ने एक ज्ञापन जारी करके कहा है कि वैज्ञानिक समुदाय होम्योपैथी को छद्म-विज्ञान मानता है। चिकित्सा के क्षेत्र में होम्योपैथी का इस्तेमाल रूस की राष्ट्रीय चिकित्सा सुविधाओं के बुनियादी लक्ष्यों के विपरीत है, इसलिए सरकार को इसका विरोध करना चाहिए। यह फ़ैसला करने से पहले रूस की विज्ञान अकादमी ने होम्योपैथी के सिलसिले में अलग से कोई विशेष शोध नहीं करवाया है। रूस की विज्ञान अकादमी का यह ज्ञापन होम्योपैथी के बारे में किए गए अन्य बहुत से शोधों और अनुसन्धानों पर आधारित है। इस ज्ञापन पर रूस के 30 से ज़्यादा वैज्ञानिकों और डॉक्टरों ने हस्ताक्षर किए हैं।
इस ज्ञापन पर हस्ताक्षर करने वाले वैज्ञानिकों का यह मानना है कि होम्योपैथी का इस्तेमाल पिछले 200 सालों से किया जा रहा है और इस पूरे दौर में होम्योपैथी ने अभी तक यह सिद्ध नहीं किया है कि उससे कोई फ़ायदा होता है। ज्ञापन में कहा गया है — होम्योपैथी चिकित्सा को वैज्ञानिक आधार देने की कोशिशें लगातार की गई हैं, लेकिन वे सभी प्रयास असफल रहे हैं। रूसी वैज्ञानिकों ने रूस के स्वास्थ्य मन्त्रालय से सिफ़ारिश की है कि सरकारी अस्पतालों और क्लिनिकों में होम्योपैथी दवाइयों का इस्तेमाल न किया जाए और दवाइयों की दुकानों पर उन्हें बेचते हुए लोगों को यह भी बताया जाए कि इसका कोई सबूत नहीं है कि ये दवाइयाँ वास्तव में इलाज भी करती हैं।
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बीमारी का कारण ही बीमारी की दवा है
होम्योपैथी चिकित्सा पद्धति का आविष्कार अट्ठारहवीं सदी के आख़िर में हुआ था। एक जर्मन डॉक्टर क्रिस्चियन हैनीमैन ने होम्योपैथी की खोज की थी। उनका मानना था कि जिस पदार्थ से आदमी में बीमारी पैदा होती है, वही पदार्थ अगर एकदम कम मात्रा में उस रोगी को दिया जाए तो वह ठीक हो जाता है। हैनीमैन ने इसके लिए एक सूत्र भी बताया था — बीमारी के कारण में ही बीमारी का इलाज छुपा होता है।
यह सूत्र ही होम्योपैथी चिकित्सा का मूलाधार है। बीमारी पर असर करने वाले पदार्थ को पानी में घोल कर या नन्ही-नन्ही मीठी गोलियों में घोलकर इतना पतला किया जाता है कि उसका असर इतना सूक्ष्म हो जाता है कि लगभग नगण्य बन जाता है। होम्योपैथी के समर्थकों का मानना है कि दवा को पतला करके उसके असर को सुरक्षित रखा जाता है, जबकि होम्योपैथी के विरोधियों का मानना है कि होम्योपैथी के इलाज से रोगी को किसी तरह का कोई फ़ायदा नहीं होता।
एक रूसी पत्रिका ’दुनिया इन दिनों’ में होम्योपैथी के बारे में अपने लेख में पत्रकार आस्या कज़ान्त्सियेवा ने लिखा था — सबसे बड़ी बात तो यह है कि होम्योपैथी किसी भी गम्भीर बीमारी का इलाज नहीं करती। अपने लेख में उन्होंने बताया था कि इलाज का यह तरीका बस, एक आभासी तरीका है। पत्रिका में यह लेख प्रकाशित होने के बाद रूस की ’राष्ट्रीय होम्योपैथी परिषद’ के सदस्य बेहद नाराज़ हो गए और उन्होंने पत्रिका पर अदालत में मुक़दमा ठोक दिया। लेकिन वे यह मुक़दमा हार गए।
परन्तु इसके बावजूद रूस में होम्योपैथी बहुत लोकप्रिय है और होम्योपैथी दवाओं का व्यवसाय रूस में ख़ूब फल-फूल रहा है। रूसी विश्लेषक कम्पनी ’क्विनटाइलेस’ के अनुसार, सन 2016 में रूस में क़रीब साढ़े 7 अरब भारतीय रूपए की दवाइयाँ बिकीं, जो 2015 से 5.6 प्रतिशत अधिक थीं।
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व्यापक हमला
रूस की विज्ञान अकादमी के ’छद्म विज्ञान आयोग’ का यह ज्ञापन रूस में होम्योपैथी चिकित्सा पद्धति पर इतिहास का सबसे गम्भीर हमला है। रूस के तरूसा नगर के अस्पताल के हृदयरोग विशेषज्ञ डॉ० अर्त्योमी अख़ोतिन ने रूस-भारत संवाद से इस सिलसिले में बात करते हुए कहा — चिकित्सा विज्ञान के क्षेत्र में होम्योपैथी के पैर फैलाने, मेडिकल कालेजों तक होम्योपैथी के पहुँच जाने और सरकारी मीडिया में भी होम्योपैथी को संरक्षण देने के ख़िलाफ़ सामने आई यह एक आम प्रतिक्रिया है। हालाँकि कई डॉक्टरों ने पहले भी होम्योपैथी के बढ़ते क़दमों को देखकर उसकी आलोचना की थी, लेकिन अब उसकी खुलकर आलोचना करना और उसके ख़िलाफ़ खड़े होना ज़रूरी हो गया था।
किन्तु होम्योपैथी के समर्थक रूस की विज्ञान अकादमी के ’छद्म विज्ञान आयोग’ ने इस ज्ञापन से ज़रा भी सहमत नहीं है। पूर्व सोवियत संघ से अलग हुए देशों में होम्योपैथी की प्रेक्टिस करने वाले डॉक्टरों की एसोसियेशन के सदस्य मिख़ाइल श्कालेन्का ने समाचारपत्र ’कमेरसान्त’ को बताया कि रूस के ज़ार निकलाय प्रथम से लेकर द्वितीय विश्वयुद्ध में रूसी सेना के सेनापति मार्शल झूकफ़ तक बहुत से प्रसिद्ध लोग होम्योपैथी पर विश्वास रखते थे और होम्योपैथी इलाज की बदौलत ठीक भी हुए थे।
रूस दुनिया का अकेला ऐसा देश नहीं है, जहाँ होम्योपैथी को सन्देह की नज़र से देखा जाता है। विश्व स्वास्थ्य संगठन ने तो सन 2009 में ही दुनिया के निवासियों को होम्योपैथी से बचने की चेतावनी देते हुए कहा था कि होम्योपैथी से इलाज कराने की चक्कर में न पड़िए क्योंकि ऐसा न हो कि इलाज की अधिक वैज्ञानिक पद्धति के अभाव में कहीं आपकी मौत हो जाए।
तो क्या अब रूस में होम्योपैथी अवैध हो गई?
रूस की विज्ञान अकादमी के ’छद्म विज्ञान आयोग’ का यह ज्ञापन कानूनी रूप से कोई ताक़त नहीं रखता है। यह तो, बस, रूस के स्वास्थ्य मन्त्रालय और रूस की अन्य संस्थाओं से की गई एक अपील-भर है। रूस के स्वास्थ्य मन्त्रालय ने बताया कि वह अब एक ऐसा कामकाजी-दल बनाएगा, जिसमें रूस की विज्ञान अकादमी के वैज्ञानिक और होम्योपैथी के विशेषज्ञ भी शामिल होंगे। यह कामकाजी-दल रूस में होम्योपैथी की स्थिति का अध्ययन करेगा और उसके बाद यह तय करेगा कि होम्योपैथी को लेकर देश में क्या नीति अपनाई जानी चाहिए। रूस की ’एकाधिकार विरोधी सेवा’ ने इस ज्ञापन का समर्थन किया है और कहा है कि इसकी ज़रूरत बहुत पहले से ही महसूस हो रही थी और यह ज्ञापन सही समय पर सामने आया है।
डॉ० अर्त्योमी अख़ोतिन का मानना है कि हो सकता है रूस का स्वास्थ्य मन्त्रालय इस कामकाजी-दल की सिफ़ारिशें मान जाए। लेकिन ऐसा शायद ही होगा कि रूस से होम्योपैथी का नामो-निशान मिट जाएगा। रूस-भारत संवाद से बात करते हुए डॉ० अर्त्योमी अख़ोतिन ने कहा — होम्योपैथी पर रोक लगाने से होम्योपैथी के डॉक्टर अधिक अच्छे डॉक्टर नहीं बन जाएँगे, लेकिन तब रोगियों के बीच होम्योपैथी की लोकप्रियता बढ़ सकती है। इसलिए यह ज्ञापन बस, प्रतीकात्मक अर्थ रखेगा और होम्योपैथी को लेकर स्वास्थ्य मन्त्रालय तथा वैज्ञानिक जगत की सैद्धान्तिक प्रतिबद्धता को ही दिखाएगा।
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